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Danteshwari Temple : दंतेश्वरी मंदिर के बारे में जाने

Danteshwari Temple Dantewada Chhattisgarh : बस्तर में कई सारे  प्राकृतिक स्थल हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं लेकिन इन सभी के  अलावा मां दंतेश्वरी मंदिर भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। 

अगर आप दंतेश्वरी मंदिर के दर्शन से पहले वहाँ के इतिहास, वहाँ की मान्यताओं और मंदिर प्रांगण में स्थित स्तम्भ, मूर्तियों  के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद जायेंगे तो आपको एक अलग ही अनुभूति होगी। मंदिर के आसपास की हरियाली, स्वच्छ और शांत वातावरण आपके मन को सुखद अहसास करायेंगे। 

Danteshwari Temple
माँ दंतेश्वरी मंदिर

माँ दंतेश्वरी मंदिर 

दंतेश्वरी मंदिर छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम के पास में स्थित है। मंदिर में स्थित माता की मूर्ति षटभुजी वाले काले ग्रेनाईट पत्थर से बनी हुई है। दंतेश्वरी माता की मूर्ति की 6 भुजाएँ है जिनमे से दाएँ हाथों में क्रमश शंख, खडग और त्रिशूल है बाएं हाथों में क्रमश घंटी, पद्म और राक्षस है। मूर्ति के उपर चाँदी का छत्र है वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। माता जी का प्रतिदिन श्रंगार के साथ मंगल आरती किया जाता है। द्वार पर दोनों ओर द्वार पाल की मूर्ति है जो एक हाथ में सर्प और दूसरे में गदा लिए हुए खड़े हैं। मंदिर चार भागों में विभाजित है जैसे

  1. गर्भग्रह
  2. महामंडप
  3. मुख्यमंडप
  4. सभा मंडप 

गर्भ ग्रह और महामंडप का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है। इन सभी के अलावा मंदिर में और भी कई भगवानों की मूर्तियां हैं जैसे गणेश जी, शिव जी, विष्णु, भैरव इत्यादि।

इस मंदिर के गर्भग्रह में सिले हुए कपड़े पहनकर जाना मना है यहाँ पुरुष धोती या लुंगी पहनकर ही मंदिर में जाते हैं इसलिए मंदिर जाने से पहले धोती पहनना जरुर सीख लें। दंतेश्वरी मंदिर के अलावा यहाँ और भी कई सारे मंदिर है जैसे  माँ भुनेश्वरी का मंदिर, भैरव मंदिर इत्यादि। स्थानीय लोगो की मान्यता है की दंतेश्वरी देवी की पूजा अर्चना करने के बाद भैरव बाबा का दर्शन करना आवश्यक है अन्यथा पूजा पूर्ण नही माना जाता है।

जब भी बस्तर जाने का मौका प्राप्त हो तो आपको एक बार दंतेश्वरी माता मंदिर जरुर जाना चाहिए। आइये हम इस मंदिर के इतिहास पर नज़र डालते हैं।

दंतेश्वरी मंदिर का इतिहास ( Danteshwari Temple History In Hindi )

वारंगल राज्य के राजा अन्नम देव ने चौधरी शताब्दी में दंतेश्वरी मंदिर  का निर्माण करवाया। इस मंदिर को 52वाँ शक्ति पीठ माना जाता है। इस मंदिर के निर्माण के बाद कई राजाओं ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। सबसे पहले वारंगल के अर्जुन कुल के राजाओं ने करवाया उसके बाद वर्ष 1932-33 में महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने  जीर्णोद्धार करवाया।  इस  मंदिर से संबंधित कई  सारी किवदंतियां प्रचलित है जिनके बारे में नीचे बताया गया है।

ऐसा माना जाता है कि अन्नमदेव वारंगल से जब यहां आए तो उन्हें दंतेश्वरी  माता का वरदान मिला था की जहां तक अन्नमदेव और उनके पीछे देवी आयेंगी जहाँ तक अन्नमदेव पैदल जायेंगे वहां तक उनका राज्य का विस्तार होगा लेकिन एक शर्त यह थी कि वो पीछे मुड़कर नहीं देख सकते हैं अगर पीछे मुड़कर देखते हैं तो वहां पर देवी को स्थापित करना होगा।

अन्नमदेव  कई दिन और रात तक चलते रहे जब चलते-चलते डंकिनी शंखनी नदी के संगम पर पहुंचे तब नदी के जल में डूबे पैरों में पायल की आवाज़ पानी के कारण नहीं आ रही थी तो अन्नमदेव ने  पीछे मुड़कर देखा। जिसके बाद देवी ने आगे बढ़ने से मना कर दिया। वचन के अनुसार माता के लिए अन्नमदेव ने डंकिनी शंखिनी के संगम के निकट एक मंदिर बनवा दिया तब से माता की मूर्ति वहीं विराजमान है।

दंतेश्वरी मंदिर कैसे जाएँ

दंतेश्वरी मंदिर पहुँचना बेहद ही आसान है मंदिर तक आपको पक्की सड़क मिलेगी आप अपने वाहन या फिर बस से भी पहुंच सकते हैं।  नियमित बस सेवाएं उपलब्ध है दंतेवाडा से रायपुर, हैदराबाद और विशाखापट्नम जुड़ा हुआ है।

  • निकटतम बस स्टैंड – दंतेवाडा बस स्टैंड
  • निकटतम रेलवे स्टेशन –  विशाखापट्टनम और दंतेवाड़ा के बीच दो दैनिक ट्रेनें उपलब्ध हैं।
  • निकटतम हवाई अड्डा – स्वामी विवेकानंद हवाऊ अड्डा रायपुर

Places To Visit Near Danteshwari Temple

ढोलकल गणेश – ढोलकल गणेश छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में दंतेवाड़ा से 18 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव के पास बैलाडीला पहाड़ी में लगभग 3000 की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर के पीछे कई सारे किदवंती स्थानीय लोगों में प्रचलित है। विशेषज्ञों का मानना है कि भगवान गणेश की यह मूर्ति लगभग 1000+ वर्ष पुराना है इस मूर्ति को नागवंशी शासकों के शासन काल में 9 वीं से 11 वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था।

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